आत्मा का अस्तित्व ( what is Atma)

 

आत्मा का अस्तित्व

आत्मा के बारे में माना जाता है की आत्मा का वास पूरे शरीर में होता है शरीर में जहाँ जहाँ भी हमे कुछ महसूस होता है आत्मा का वास वहां माना जाता है अगर तर्क की बात करे तो आत्मा की उपस्तिथि बालों तथा नाखूनों में नहीं हो सकती क्युकी बालों तथा नाखूनों में हमें कुछ महसूस नहीं होता.

और दूसरी ओर शास्त्रों की मानें तो आत्मा दिमाग यानी मस्तिकष में वास करती है। तथा योग के अनुसार यह आत्मा हमारे शरीर में कुछ विशेष केंद्रों पर रहती है और योग की भाषा में इन केंद्रों को सहस्रार चक्र या ब्रह्मरंध्र कहते हैं

अब तो विज्ञान भी मानने लगा है की आत्मा या चेतना होती है मृत्यु का करीब से अनुभव करने वाले लोगों या क्लिनिकलि तौर पर मृत करार दिए गए किंतु फिर जी उठे लोगों के अनुभवों के आधार पर यह सिद्धांत काफी चर्चा में है। और कुछ धर्म शास्त्रियों का मानना है की आत्मा एक प्रकाश पुंज होती है जो की परमआत्मा का ही अंश होती हैं या अन्य शब्दों में कहें की परमप्रकाश की एक छोटी सी लौ है ये आत्मा। जो ब्रमांड में मौजूद समस्त ऊर्जाओं से चलती है। और कुछ धर्म शास्त्रियों का मानना यह भी है की ये ऊर्जा अनादि है यानी न इन ऊर्जाओं को ख़त्म किया जा सकता है और न ही उत्पन्न किया जा सकता है

और यह ऊर्जा कई शरीरों से होते हुए परम् आत्मा में मिल जाती है और ये ही शरीरों का सफ़र ही आद्यात्मिक यात्रा कहलाती है।और यह ऊर्जा कई शरीरों से होते हुए परम् आत्मा में मिल जाती है और ये ही शरीरों का सफ़र ही आद्यात्मिक यात्रा कहलाती है। कई शरीरों से होते हुए जब ये आत्मा परमात्मा में मिलती है तब धर्म के मुताबित ये आत्मा मोक्ष को प्राप्त करती है।

मनोविज्ञान के अनुसार जब हम सोते है तब सपने देखने का काम हमारा मष्तिक्ष करता है और ये सपने हमें अवचेतन मन दिखता है और जब हम ग़हरी नींद में सोते है तब अच्छी नींद सोने वाला तत्व आत्मा होती है और कई महानुभावो के अनुसार आत्मा श्पर्श ,स्वाद ,दृष्टि तथा श्रवण की चेतनाओं का समूहों ही आत्मा है।

वास्तव में आत्मा नाम की कोई चीज होती ही नहीं। महात्मा बुद्ध ने 60 से भी अधिक परीक्षणों द्वारा यह सिद्ध किया है। '' शब्बासकसुत्त '' नामक एक पुस्तक में उन्होंने कहा है की " इस क्षण आत्मा को अपरिवर्तनीय , नित्यें समझना और ऐसा समझना की आत्मा सदा थी और रहेगी , एक भ्रान्ति का ग्रास है ,एक भ्रान्ति का वन है ,एक भ्रान्ति की खाई है , इस भ्रांति में रहने वाले को जन्म , जरा , मृत्यु , दुख , रुदन और अशांति की बुराई से छुटकारा नहीं मिल सकता ” ।

What is Atma

 उपनिषदों की आत्मा सम्बन्धी मान्यताओ को ध्यान देंखे तो वह भी एक दूसरे से भिन्न है यानि परस्पर विरोधी है इन्हे पढ़ने के बाद कुछ ऐसा प्रतीत होता है की ये सभी एक दूसरे की बात काट रहे है या माने की खंडन कर रहे है।

“ कठ उपनिषद “ (2 -6 -17)में कहा गया है की " अंगुष्ठमात्रः आत्माः  " यानि आत्मा अंगूठे के समान मात्र है अर्थांत आत्मा अँगूठे के जितनी आकार की है पर प्रश्न ये उठता है की यदि आत्मा अंगूठे जितनी है तो वह पुरे शरीर में कैसे फैली हुई है?

" श्वेताश्वर उपनिषद  "(5 - 9) में कहा गया है की एक बाल के आगे के हिस्से का एक टुकड़ा लो और उसके सौ टुकड़े कर दो तो उस बाल का सौवां टुकड़ा एक आत्मा के बराबर होता है। तो प्रश्न ये उठता है की अगर आत्मा का आकर इतना छोटा या सही शब्द होगा सूक्ष्म यानि लगभग अदृश्य है तो ये पुस्तक वाले महानुभाव को आत्मा के दर्शन कैसे हो गए। ये बात भी पूरी तरह से आत्मा के अश्तित्व को नकारती है

छांदोग्यः उपनिषद " (3-1-14-2) में कहा गया है की ' आत्मा जौ के दाने के सामान होती है ' अब इनदोनो उपनिषद में इतना विरोधाभाष क्यों , एक ओर तो बाल के दाने का सौवां हिस्सा और दूसरी ओर जौ के दाने के सामान ? 

" मुंडकोपनिषद " ( 3-1-9 ) कहता है , ' आत्मा अणु के समान है. ' ऐसे कई परस्पर विरोधी मत है, जो किसी भी विचारकों को उलझन में डाले हुए है, और इस प्रकार आत्मा एक अस्वीकरिये वस्तु रहे जाती है।

गीता(13-33) में कहा गया है , " जैसे एक सूर्य सारे जगत को प्रकाशित करता है , वैसे एक ही आत्मा अब शरीरों को प्रकाशित करती है , अर्थात सब में एक ही आत्मा है , यदि सब में एक ही आत्मा है तो फिर एक दूसरे इंसान से भिन्न भिन्न व्यहवार क्यों कर रहे है  एक ही आत्मा है तो सब लोगो को एक सा व्यहवार करना चाहिए और सभी को बुरा या अच्छा होना चाहिए।

अब हमे धीरे धीरे समझ आ रहा है की आत्मा नाम का कोई तत्व है ये सब इंसान की बनाई कपोल कल्पना है 

मुझे उम्मीद है की आपको ये लेख आत्मा का अस्तित्व (Existense of Aatma in Hindi) से आत्मा के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला होगा और ये अपको पसंद भी आयेगा. इस लेख से जुड़े आपके कोई भी दुसरे विचार हैं तो उसे हमारे साथ जरुर बाटें और हमें अपना पूरा सहयोग दें.

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