Putra Ratan ( Importance of boy child 2021) / पुत्र रतन

 


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पुत्र रतन का अर्थ :-

घर में पुत्र के जन्म पर इतना जश्न क्यों मनाया जाता है ? आज ही नहीं कई दसकों से ही पुत्र के जन्म को बहुत ही महत्तव दिया जाता रहा है आज 21 वीं सदी में भी जहाँ कम्प्यूटर का युग है यहाँ भी हर घर में पुत्र जन्म की कामना की जाती है।

नवविवाहित जोड़े को सर्वप्रथम पुत्र प्राप्ति का ही आशीर्वाद दिया जाता है ऐसा क्यों ? की पुत्र के पैदा होने पर ही  घर में थाली बजाई जाती है?

आज बहुत सारे सवाल है जिनका जवाब किसी के पास नहीं या कोई मुझे आज तक जवाब से संतुष्ट नहीं कर पाया। 


1) पुत्र ही वंश चलाता है पुत्री नहीं क्यों ? :-

भारत जैसे देश में लोगो का मानना है की वंश तो पुत्र ही आगे बढ़ाते हैं क्यों ? अगर विज्ञान की दृष्टि से देखें तो  पुत्र हो या पुत्री दोनों ही अपने माँ बाप के वंश को आगे बढ़ाते हैं फिर आपने कैसे समझ लिया की पुत्र ही वंश बढ़ाता है पुत्री नहीं।  

कथन 1 :

अगर एक लड़की किसी लड़के से शादी करती है तो उनसे यदि दो सन्तानो की उत्पत्ति हो एक लड़की और एक  लड़का,यदि यहाँ फिर लड़का दूसरे घर की लड़की को शादी कर घर लाता है तो उनसे भी अगर दो संतान हो तो वो दोनों संतान लड़के का वंश कहलायेंगे  की लड़की का , क्यों ? क्यूँकि लड़की शादी के बाद दूसरे घर गई। निम्न चित्र से समझे



कथन 2 :

अगर एक लड़की किसी लड़के से शादी करती है तो उनसे यदि दो सन्तानो की उत्पत्ति हो एक लड़की और एक लड़का,यदियहाँलड़कीदूसरेघरकेलड़कथन 2 :

अगर एक लड़की किसी लड़के से शादी करती है तो उनसे यदि दो सन्तानो की उत्पत्ति हो एक लड़की और एक लड़का ,यदि यहाँ लड़की दूसरे घर के लड़के के साथ शादी तो करे पर उसके घर  जाये या अपने घर उस लड़के को रहने के लिए कहे तो उनसे भी अगर दो संतान हो तो वो दोनों संतान लड़की का वंश कहलायेंगे  की लड़के का , क्यों ? क्यूँकि लड़का शादी के बाद दूसरे घर गया। निम्न चित्र से समझे ! के साथ शादी तो करे पर उसके घर  जाये या अपने घर उस लड़के को रहने के लिए कहे तो उनसे भी अगर दो संतान हो तो वो दोनों संतान लड़की का वंश कहलायेंगे  की लड़के का , क्यों ? क्यूँकि लड़का शादी के बाद दूसरे घर गया। निम्न चित्र से समझे !



हमें पता है हम असंभव बात कर रहे हैं क्यूंकि यहाँ समाज ही पुरुष प्रधान है जो ये करने की इजाजत ही नहीं देगा। क्या दुर्भाग्य है स्त्री को अपना जीवन जीने की लिए पुरुषों से इजाजत लेनी पड़ रही है। 


2पुत्र ही बुढ़ापे का सहारा होता है क्यों ?

अकसर जब किसी के घर में पुत्र संतान उत्पन्न होती है तो यही कहा जाता है " बेटा हुआ है " बुढ़ापे का सहारा बनेगाक्यों बेटियां बुढ़ापे का सहारा नहीं बन सकती।

समाज की वास्तविकता यह है की जितना काम लड़का  सकता है उतना ही काम लड़की भी  सकती है बस समझने की जरुरत है जैसे : एक घर में बच्चों के रूप में एक लड़के और लड़की का जन्म हो और उसमें से लड़की शादी होकर चली जाये तो लड़की माता पिता के काम नहीं  पायी पर , जब लड़का शादी करता है तो वो भी एक लड़की को घर लाता है अगर वो घर दूसरे घर की उस लड़की को अपनी बेटी समझे तो। परन्तु अंतर करने वाले बेवकूफ लोगों को ये समझ नहीं आएगा। उनको तो रटा रटाया अलाप ही गाना है " एक बेटा तो होना ही चाहिए ".


3पुत्र पैदा करने वाली महिला ही सौभाग्यवती होती है पुत्री नहीं ?

भारत में जो महिला पुत्र पैदा करती है उसे सौभाग्यवती कहा जाता है और जो महिला पुत्री को जन्म देती है उसको तो  जाने किस किस नामों से नवाजा जाता है। दुर्भाग्य है इस देश का। एक तरफ तो यह कहा जाता है की नारी लक्ष्मी है , सरस्वती है  या दुर्गा का रूप है और दूसरी और उसके जन्म पर भी आपत्ति है समाज के लोगो को।  क्या दोगलापन है ये।उसे हर पल तरिष्कृत किया जाता है ऐसा लगता है जैसे पुत्री को जन्म देकर उस महिला ने कोई गुनाह कर दिया हो क्या दुर्भाग्य है ? बच्चे के जन्म में माता पिता बराबर जिम्मेदार होते है की पुत्र होगा या पुत्री।


4पुत्र या पुत्री की परवरिश में अंतर क्यों किया जाता है ? 

पुत्र को तो पूरी आजादी दी जाती है वह अपने मन का हर काम करने के लिए आजाद है जबकि पुत्री को वह सब आजादी नहीं दी जाती। जैसे पुत्र खाना खाकर बर्तन वही छोड़ सकता है पर एक लड़की बर्तन वही छोड़ दे तो सबकी आँखे तिरछी हो जाती है। जैसे घर का काम करने का ठेका पुत्री या स्त्री ने ही ले रखा है लड़का घर का काम करने लगे तो उसको सब लोग मुर्ख की नज़रो से देखने लगते है लोग उस पर फब्तियां कसने लगते है क्या मजाक है ? कहाँ गया वो नारा " लड़का लड़की एक सामान " यही लड़कियों को अपना जीवन अपने हिसाब से जीने का हक़ नहीं होता बस जी रहे है। कहने को तो हमारा भारत आज़ाद हो चूका है पर  लगता है आज़ाद सिर्फ भारत हुआ है यहाँ की स्त्री नहीं। उन्हें अपनी सम्पूर्ण जीवन बस पुरुषों को आधार मान कर ही जीना होगा इस समाज के धर्म ग्रंथों में भी यही अंकित है की स्त्री के बचपन में पिता , यौवनअवस्था होने पर भाई , विवाह होने पर पति  और अंत बुढ़ापा आने पर पुत्र के अनुसार ही जीवन जीना होगा। बड़ा दुर्भाग्य है।

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